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मेरे घर के सामने एक पेड़ है. अब तो काफ़ी बड़ा और सुंदर, aesthetic looks देता है! उम्र में  मुझसे काफ़ी बड़ा है और मुझसे ज़्यादा मज़बूत भी.

पेड़  बिल्कुल  हमारे life cycle की तरह होते हैं. बस फ़र्क इतना है की हमारी life एक “fast pace” पे करवट ले रही है और पेड़ धीरे धीरे ज़िंदगी को बड़ी तसल्ली से देखते हैं.

पतझड़ के उस मौसम में सारी पत्तियाँ पीली और सूखी थीं.  As you call it, “on the verge of falling”, just like our relations. Initially they are lustrous and healthy. हमें लगता है काश सब ऐसा ही रहे, पर क्या ऐसा हो पाता है? जैसे पेड़ उन सूखी पत्तियों को चाहकर भी जोड़े नही रख पाता, आप भी उन रिश्तों को जाने से नही रोक पाते.

समय बीता और मेने देखा उस पेड़ पर छोटी, नयी पत्तियाँ उगने लगीं थीं. वो पेड़ बड़े प्यार से उन्हे “nurture” कर रहा था. क्या पेड़ ने उन्हे आने से मना किया?…नहीं! तो हम अपनी life में नये लोगों को जगह देने में इतना हिचकते क्यूँ हैं?

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इसका जवाब कुछ देर सोचने पे मुझे मिला की ऐसा इसलिए क्यूंकी जिस तरह ये पत्तियाँ बिना कुछ कहे, पेड़ को बिना तक़लीफ़ दिए चली जाती हैं, इंसान ऐसा नही करते, वो  तक़लीफ़ देकर, ज़ख़्म देकर, अंदर से खोकला कर जाते हैं.

वो पेड़ आज नयी पत्तियों के आने का जश्न मना रहा है और हम सब यहीं खड़े हैं… उस खोकले हिस्से को लिए…

आप ही बताइए…How can this heart feel so heavy and empty, all at the same time?

The tree above is my muse!

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